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कहीं लूटा गया गरीब कोई तो कहीं दिख रही लाचारी है

कहीं लूटा गया गरीब कोई
तो कहीं दिख रही लाचारी है 
लेकिन ख़ामोश सरकारें हैं..
कहीं हो रहे कत्ल
तो कहीं हावी हो रहे अत्याचारी हैं
लेकिन ख़ामोश सरकारें हैं..
किसी ने खाया ही नहीं पेट भर
तो कहीं खाई जा रही सड़कें और चारदीवारी है
लेकिन ख़ामोश सरकारें हैं..
चली गई आंखें देखते राह इंसाफ की
तो कहीं इंसाफ ही इंसान पे भारी है
लेकिन ख़ामोश सरकारें हैं..
तू भी क्या कर लेगा लिख कर कातिब
जब तेरे अपने ही अत्याचारी हैं
लेकिन ख़ामोश सरकारें हैं..

©Balwinder Pal
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