आज मेरे लफ्ज़ कम ज़रूर पड़ गए हैं, पर लिखना नहीं भुला मैं; आज खुद से ज़रूर थक गया हूँ, पर थककर भी चलना नहीं भुला मैं; नुमाईशों को आँसूओं में बदलते देखा है, पर उन आँसूओं को रोकना नहीं भुला मैं; अक्सर अश्कों को बिखरते देखा है, पर उन्हें स्याहियों में बदलना नहीं भुला मैं; दिन में सहमा सहमा सा रहता हूँ, पर रातों से लड़ना नहीं भुला मैं, ख़ुदा से आज भी हैं मेरी शिकायतें, पर दुआएं सबकी माँगना नहीं भुला मैं; चाहत आज भी है कुछ ऊचाइयों पर जाने की, पर दिल और दिमाग की बगावत आज भी नहीं भुला मैं।। दिल-ए-दास्ताँ