38. परदे ट्रेन में चलती हवा से क्या डरना, खिड़की बंद करने को परदे क्यों. पहाड़ों से नदी से निकलना, उनको टूटने के परदे क्यों. शर्माने - लजाने का क्यों रिवाज करना, मुख को परदे से ढकना क्यों. दूरियों को बढने का अवसर मिलना, कदमों से कम करने के परदे क्यों. यहां-वहां फैली महक से भरना, उनसे दूर होने के परदे क्यों. उत्कर्ष छुपा नही सकते , फिर यह शब्दों के परदे क्यों. ©Ankit verma utkarsh❤ collection:- ठंडी धूप 38th poetry #Goodevening Vipul bhuriya Sbbu Ali Vijay Thakur Pranjul Shukla Mihir Joshi