दुर्योधन का अहं हिमालय निर्मित किस लाचारी से? आँख की पट्टी पूछ रही है पटरानी गन्धारी से।। वंशवृद्धि जिस पुण्य सत्य से हुई कीर्ति आर्यावर्ती। वंश नाश को प्राप्त हुई वह सत्य की पर्देदारी से।। भस्म स्वयं भी केंद्र में होगा अग्नि परिधि भी लीलेगी। बैठ के जो बारूद ढेर पर खेलेगा चिनगारी से।। आर्यावर्त की धरा यतीमों विधवाओं से ना पटती हर पौरुष बस लड़ भर लेता क्षुद्र स्वार्थ लाचारी से।। धर्मयुद्ध के अब तक का इतिहास गवाही देता है। हर निर्णायक युद्ध शुरू है सदा बलत्कृत नारी से।। ©Santosh Pathak #महाभारतयुद्धभूमि #धर्मयुद्ध