भावनाओं की इमारत से गिर गया हूं नीचे पत्तो की तरह बिखर गया हूं समेट के सारे इत्तेफाक हकीकत से रु बा रु हो रहे है फिर देखते हैं टूटा हूं या निखर गया हूं हावी हैं कई बातें कुछ गलती की बात भी याद आती है मुझको शायद मैं इन सब से चिढ़ गया हूं तिफ़्ल सी जिद्द किए बहलाया करता था खुद को और तमाम रिश्तों से मैं बिछड़ गया हूं मेरी साफ मंजिल अब ढूंढली है मैंने आंखे अब मूंदली हैं किसी और के ख्वाहिश की छाप मेरे जहन में समा बैठी है अपने रास्तों की सड़क मैंने खूंदली है भावनाओं की इमारत से...... नए पत्तो की तरह ..... ©Mahima Shrivastava #poemshàlà_7999 . . . . #poem #poem✍🧡🧡💛 #poemandkahaniya #Poetry #poetry_addicts