रैना बचपन में शैतानी करने पर, तारे गिनने की सज़ा मिल जाती थी। और रैना मेरी यूं समझ लो, तारों की छांव में कट जाती थी। कुछ ख्वाब देखता था मन, मां जब नन्ही परी की लोरी सुनाती थी। उन्मुक्त- अल्हड़ सा था बचपन, नानी के पिटारे में जब सोन चिरैया की कहानी थी। रैना तो अब भी आती है, यादें सारी वो लाती है। एक वक़्त था जब सबकी मैं दूलारी थी, उस वक़्त की बात कुछ निराली थी। अब तो ना तारें ही दिखते हैं, न बचपन के वैसे नजारे ही दिखते हैं। #रैना#बचपन