लोरी माटी के कण-कण चुनके ,मैं खा जाता था। माँ की लोरी सुनके ही, मैं सो पाता था।। मैंने ना देखा तुम जैसा,माँ!सच्चा कोई दुलार। और ना देखा लोरी जैसे,शब्दों का कोई हार। मैं एक डाल से फूटा,जब माँ ने दिया सत्कार। कि बेटा तू ही मेरा जीवन,तू ही है संसार ।। लोरी