देखेंगे ज़िन्दगी की किताब आख़िर ऐसा दर्ज़ क्या है, दवा तक जो बेअसर हो गई आख़िर ऐसा मर्ज़ क्या है, ख़ुद को समझ पाना इतना मुश्किल भी नहीं लगता है, ज़माने को समझाते है इक दफा ख़ुद को समझने में हर्ज़ क्या है, ज़िन्दगी कितनी खुशनुमा होती अगर ये यादे ना होती तो, इन यादों के बोझ से बढ़कर आख़िर कोई कर्ज क्या है, रंग बदलती दुनियां में सबके अलग किरदार है, जो ढला हो हर किरदार में उससे पूछो आख़िर फ़र्ज़ क्या है, ©Komal #life_is_too_short