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वो औरत है उसे चाहिये कि वो झुकना सीखे और फिर झुकन

वो औरत है 
उसे चाहिये कि वो झुकना सीखे
और फिर झुकने में बुराई ही क्या है
जिस पेड पर फल लगते हैं वही तो झुकता है !

वो औरत है
उसे चाहिये कि वो माफ करना सीखे
उसके दिल में बहुत जगह होनी चाहिये
जो माफ करता है वही तो बडा होता है !

वो औरत है
उसे चाहिये कि वो चुप लगाना सीखे
चुप रहने से ही तो घर चलते हैं
एक चुप ही तो सौ को हराता है !

वो औरत है
उसे चाहिये कि वो धीरज रखना सीखे
धीरज से ही तो रिश्ते नाते निभते हैं
धीरज का फल ही तो मीठा होता है !

वो त्याग की मूर्ति, करूणा का सागर, ममता की छाँव है
वो सीता, सावित्री, अहिल्या, उर्मिला की वंशज है
उसे चाहिये कि वो इनके दिखाये रास्ते पर चले !

वो शक्ति है, जननी है, परिवार की धुरी है !

औरत ये है ,औरत वो है
उसे ऐसा बनना चाहिये, उसे वैसा बनना चाहिये
उसे ऐसा करना चाहिये, उसे वैसा करना चाहिये

बुजुर्गियत से भरे तमाम उपदेश
मीठी मीठी, चिकनी चुपडी, लच्छेदार बातें
और हाँ में हाँ मिलाते लोग !

अरे ! बन्द करो ये सब
ये क्या लगा रखा है तुम सबने
ये किस कसौटी पे कस दिया तुमने उसे
ये किन बंधनों में बाँध दिया 
ये कैसा बोझ लाद दिया तुमने उसकी पीठ पर

वो हाँफ रही है, थक रही है ,कसमसा रही है
उसकी आँखों में छटपटाहट उतर आयी है!

ध्यान से देखो तो उसे
उसकी भी अपनी इच्छायें हैं
वो इन्हें पूरा करना चाहती है
अपनी जिन्दगी है
वो इसे जीना चाहती है
अपने सपने हैं
वो इनमें रंग भरना चाहती है
अपना मन है
वो तुम्हारी नहीं अपने मन की सुनना चाहती है
तुम्हारी दिखायी नहीं अपनी बनायी राह पर चलना चाहती है
हँसना चाहती है, रोना चाहती है
गिरना चाहती है , सँभलना चाहती है !

कि वो कोई देवी नहीं
तुम्हारी तरह ही एक साधारण इन्सान है
और इन्सान ही बने रहना चाहती है !

कि सुनो.....
उसे इन्सान ही बनी रहने दो न ....!!!!! 

     .........रामकृपा Me and my sentiments
वो औरत है 
उसे चाहिये कि वो झुकना सीखे
और फिर झुकने में बुराई ही क्या है
जिस पेड पर फल लगते हैं वही तो झुकता है !

वो औरत है
उसे चाहिये कि वो माफ करना सीखे
उसके दिल में बहुत जगह होनी चाहिये
जो माफ करता है वही तो बडा होता है !

वो औरत है
उसे चाहिये कि वो चुप लगाना सीखे
चुप रहने से ही तो घर चलते हैं
एक चुप ही तो सौ को हराता है !

वो औरत है
उसे चाहिये कि वो धीरज रखना सीखे
धीरज से ही तो रिश्ते नाते निभते हैं
धीरज का फल ही तो मीठा होता है !

वो त्याग की मूर्ति, करूणा का सागर, ममता की छाँव है
वो सीता, सावित्री, अहिल्या, उर्मिला की वंशज है
उसे चाहिये कि वो इनके दिखाये रास्ते पर चले !

वो शक्ति है, जननी है, परिवार की धुरी है !

औरत ये है ,औरत वो है
उसे ऐसा बनना चाहिये, उसे वैसा बनना चाहिये
उसे ऐसा करना चाहिये, उसे वैसा करना चाहिये

बुजुर्गियत से भरे तमाम उपदेश
मीठी मीठी, चिकनी चुपडी, लच्छेदार बातें
और हाँ में हाँ मिलाते लोग !

अरे ! बन्द करो ये सब
ये क्या लगा रखा है तुम सबने
ये किस कसौटी पे कस दिया तुमने उसे
ये किन बंधनों में बाँध दिया 
ये कैसा बोझ लाद दिया तुमने उसकी पीठ पर

वो हाँफ रही है, थक रही है ,कसमसा रही है
उसकी आँखों में छटपटाहट उतर आयी है!

ध्यान से देखो तो उसे
उसकी भी अपनी इच्छायें हैं
वो इन्हें पूरा करना चाहती है
अपनी जिन्दगी है
वो इसे जीना चाहती है
अपने सपने हैं
वो इनमें रंग भरना चाहती है
अपना मन है
वो तुम्हारी नहीं अपने मन की सुनना चाहती है
तुम्हारी दिखायी नहीं अपनी बनायी राह पर चलना चाहती है
हँसना चाहती है, रोना चाहती है
गिरना चाहती है , सँभलना चाहती है !

कि वो कोई देवी नहीं
तुम्हारी तरह ही एक साधारण इन्सान है
और इन्सान ही बने रहना चाहती है !

कि सुनो.....
उसे इन्सान ही बनी रहने दो न ....!!!!! 

     .........रामकृपा Me and my sentiments