बेवफ़ाई लिखूँ कैसे अपने दर्द को, अपने रक्त की स्याही से। जख्म़ी हुआ दिल इतना, जो भड़े न किसी दवाई से। वह कहती है भूला दूंँ उसे, क्यों दिल लगाते पराई से। चिथरें-चिथरें हुए दिल कहे, काम चला लो तुरपाई से।। मैं बाबला था भृंग उस पर , उसने तीर चलाई चतुराई से। संभाला है खुद को वर्षों बाद, अब डर लगता है रुसवाई से।। कुंदन संभल कर रहना इश्क़ से, जख्म़ गहरे होते हैं बेवफाई से।। कुन्दन "कुंज " #SushantSinghRajput #कुन्दन_कुंज #Kundanspoetry