देखो यह कैसी हवा बह रही हैं लोग कहते है गंगा उल्टी बह रही हैं कैद रखा जिसे सोने के महल में इसे लोहे का पिंजरा कह रही हैं बेजुबान था जो चेहरा नूर के पर्दे में उसके लफ़्ज़ों से फिजा गूंज रही हैं बंद दरवाजों के पीछे सिसकियाँ जो दबी थीं चीख़ चीख़ कर अपनी दास्तां कह रही हैं तोड़ दिया था जिन पँखो को कुचलकर हौसलों से अपने आसमां छू रही हैं देखो यह कैसी हवा बह रही हैं लोग कहते है गंगा उल्टी बह रही हैं उल्टी गंगा बहना। सामाजिक मान्यताओं के विपरीत स्त्री का जीवन। देखो यह कैसी हवा बह रही हैं लोग कहते है गंगा उल्टी बह रही हैं कैद रखा जिसे सोने के महल में इसे लोहे का पिंजरा कह रही हैं