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प्रीत लगाकर, में जग से डूबा रहा दुखों में सदा मिला

प्रीत लगाकर, में जग से डूबा रहा दुखों में सदा
मिला ना खुशियों का जहाँ, खोया रहा अंधेरों में
सदा, रोशनी दिखी नही मुझे,गहराई का
पता भी ना चला, ज़िंदगी गुजरती चली गयी
खुशियों का पता ना चला, देह अभिनाशि तो 
नहीं, एक दिन तो मिट जाना है,आज नहीं तो
फिर कब खुशियों को गले लगाना है,
प्रीत लगाकर जग से, डूबा रहा दुःखों में सदा

©पथिक
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