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स्वप्न ------ मुझको कोई भी स्वप्न, देखने पसंद बहुत

स्वप्न
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मुझको कोई भी स्वप्न, देखने पसंद बहुत ,
किंतु हर स्वप्न का मैं सार जान लेता हूँ ।
लोगों से मिलकर चलना  पसंद बहुत, 
 बातों से ही आदत-व्यवहार जान लेता हूँ 
ताने-उलाहने,सुनना भी पसंद बहुत, 
इनको अपनत्व और प्यार मान लेता हूँ 
वैभव दिखाने को उधार कभी लेता नहीं, 
इसको परिश्रम की हार मान लेता हूँ
अपने मुँह मियामिट्ठू बनने की चाह नहीं 
इसको व्यक्तित्व की हार मान लेता हूँ ।
निस्वार्थ भाव जन-जन की सेवा महानता,
इसको मानवता-आधार  मान लेता हूँ ।
झूठ लोभ माया से स्वयं को बचा सका यदि,
इसको मैं स्वयं का उद्धार मान लेता हूँ
लोग मुझसे बात करें, लोग मेरी बातें  सुनें, 
 इसी  गुण को प्रभु जी का प्यार मान लेता हूँ ।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj
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