ज़िंदगी का गीत ये जिंदगी का गीत कैसे गांऊ मेै यहां जीते कैसे विचित्र क्या बताऊं मै जहां जाति धर्म यथार्थ हो चुका है उस जिंदगी की मंजिल को कहां बताऊं मै भूखे हैं बच्चे फुटपाथों में उनकी भूख कैसे मिटाऊ मैं सुनी गलियों में बैठे उन हैवानो से चलती बच्ची और महिलाओं को कैसे उनसे बचाऊ मेै रोजाना अस्वस्थ से मरते गरीबों को इलाज कैसे दिलाऊ मै मरते हैं झुल फांसी पर किसान और बिखरते हैं कैसा उनका परिवार उनके हारे संघर्ष को कैसे बताऊं मैं ढूंढ रहे हैं रास्ते बेरोजगार कमाने के न मिले तो अपने आप को मिटाने के उनके ऐसे सोच को कैसे बदल पाऊ मै बदल तो नहीं उनको कैसे बचाऊ मै उझड़े इस माहौल को नवनिर्मित कैसे बनाऊ मैं मै तो मैं इस मैं वाले सोच को हम मे कैसे बदल पाऊ मैं लिखित ऐसे गीत जिंदगी के इस पीड़ा रहित गीत कैसे गांऊ मैं खत्म हो जाए जब यह समस्याएं तब जिंदगी का नई गीत लिख गुनगुनाऊ मै #LifeSong