मेरा सहारा काश हैरान मेरे दिल को मेरा सहारा मिला होता, मेरी अलबेली कश्ती को कोई किनारा मिला होता, ज़िन्दगी ने कुछ इस तरह उलझाया है मेरी राहों को, काश मुझ राह भटके नाविक को ध्रुवतारा मिला होता, कितनी बाकी है मुझमें ज़िन्दगी, मालूम भी नहीं शायद, ख्वाहिश थी सफ़र में, कभी तो मौसमे बहारा मिला होता, परेशानियों का दौर ये कहीं से भी खत्म होता दिखता नहीं, बिखरे हुए इस मंजर में, वक़्त का ही कोई इशारा मिला होता, हर किसी से आस थी, हर किसी से बेतहाशा उम्मीद थी मुझे, उजाला ना सही तो काश खो जाने को घुप अंधियारा मिला होता, 🙏पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें🙏 (Full piece in the caption) ©Saket Ranjan Shukla मेरा सहारा काश हैरान मेरे दिल को मेरा सहारा मिला होता, मेरी अलबेली कश्ती को कोई किनारा मिला होता, ज़िन्दगी ने कुछ इस तरह उलझाया है मेरी राहों को, काश मुझ राह भटके नाविक को ध्रुवतारा मिला होता,