*आखिरी जज़्बात* **************** तर्को के मरुस्थल में सिमटे हुए जज़्बात हमेशा आखिरी ही रहे सांसे सी गिनते रहे खुद को खुलकर कभी जता ही नही पाए... प्रश्नों के किनारो पर भावों की कतारें थी थके थके सपने डगमगाती सी सड़क पर लड़खड़ा कर चले सोची थी जो मंजिल वो छू नही पाए …... गुमनामी के घेरे में पनपते रहे संशय ख्वाबों को लिए ख्यालों के शहर में , अनमने ही बसे , उन कच्चे से घरों में वो रह नही पाए... परछाईया सपनों की थी पर चाहतें अपनी भी थी अनगिन सी वो आशाएं कुछ पल की थी मेहमां बस तकते रहे उनको संग अपने कभी ठहरा नही पाएं..... एक अनसुलझी पहेली अधूरी सी कहानी एक सच्ची सी जुबानी थक गए अल्फ़ाज़ दबे रहे ,रुके रहे खुल कर तो कभी बतला नही पाए........ गर लफ्ज़ मिले कभी तो वो अधूरा सा कथानक वो अनछुई सी कहानी लिखगे अलग से उतर जायेगी तब तलक उन तर्को की थकान… जिनको कभी फुसला नही पाये …हम .!! ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) *आखिरी जज़्बात* **************** तर्को के मरुस्थल में सिमटे हुए जज़्बात हमेशा आखिरी ही रहे सांसे सी गिनते रहे खुद को खुलकर कभी जता ही नही पाए... प्रश्नों के किनारो पर भावों की कतारें थी