ग़ज़ल -------- दो जहाँ के परे ख़ाब रोते रहे और हम चैन से रात सोते रहे ज़िन्दगी बेदिली से नहीं जी कभी हम मगर दर्द का बोझ ढोते रहे आरज़ू जुस्तजू चाहतें खाहिशें मन्नतें मिन्नतें काम होते रहे ओढ़ कर शाम को बादलों का नक़ाब प्यार को प्यार से हम भिगोते रहे बात बनती रही टूटती भी रही पास आते रहे दूर होते रहे ©UrbanFakeer Gautam Sharma #ghazal #urbanfakeer #mohabbat #Muhabbat #zindagi