।।श्रृंगार।। फिजाएं महक जाती हैं जब वो गुनगुनाते हैं बड़े ही दिलकश लगते है जब भी मुस्कुराते हैं। उफ्फ ये अदाएं और टपकता नूर चेहरे से वो मुझ मासूम.. पर भी कितना जुल्म ढाते हैं। खामोशी है लबों पर ..और ये बोलती आंखें वो बिन कुछ कहे ही मुझे सबकुछ बताते हैं । किस-किस को संभाले उनके बड़े ही खूबसूरत हाथ कभी लट से उलझते हैं, कभी चोटी बनाते हैं। ।।श्रृंगार।। फिजाएं महक जाती हैं जब वो गुनगुनाते हैं बड़े ही दिलकश लगते है जब भी मुस्कुराते हैं। उफ्फ ये अदाएं और टपकता नूर चेहरे से वो मुझ मासूम पर भी कितना जुल्म ढाते हैं।