वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहारा नहीं होते कुछ लोग बिखर कर भी तमाशा नहीं होते हम ख़ाक थे पर जब उसे देखा तो बहुत रोए सुनते थे कि रेगिस्तानों में दरिया नहीं होते अब तक मोहब्बत में वफादार कौन है अब वो बेवफ़ा हुई तो ख़ता-वार कौन है ©RAHUL TIWARI Riya Rajput