फिर काँटों में क्यों न गुलाब सा हो ग़र मिले तो बिल्कुल मेरे ख़्वाब सा हो दाग़ वो हो जो उसको हसीं बना दे आँखों का काजल या आफताब सा हो मेरी चाहतों से लबरेज़ भले ही न हो मग़र इल्तजा है के मेरे रुआब सा हो उसको जिऊँ, पिऊँ उसी को ताउम्र इक बुरी लत हो या फिर शराब सा हो दूध का धुला न हो पर आईने सा साफ़ हो रूठे मनाऐ हाँ बस इतना ही खराब सा हो फिर काँटों में क्यों न गुलाब सा हो ग़र मिले तो बिल्कुल मेरे ख़्वाब सा हो @technocrat_sanam ग़र मिले.. 😊 फिर काँटों में क्यों न गुलाब सा हो ग़र मिले तो बिल्कुल मेरे ख़्वाब सा हो दाग़ वो हो जो उसको हसीं बना दे आँखों का काजल या आफताब सा हो मेरी चाहतों से लबरेज़ भले ही न हो