1975
8 March
Women's Day मनाने की शुरुआत....
मेरी आंखें इतना रोती हैं ये गीत सुन कर...औरत ने जनम दिया मर्दों को...
कि ऐसे लगता है कि आखिर हम कब सुधरेंगे... कभी सुधरेंगे भी की नहीं।
ये पोस्ट लिखने सेक्पेहले जब मैंने ये अभी सुना मेरी आंखों के सामने से अक्टूबर 1975 का वो वाक्या गुज़र गया जो मै बताने वाला हूं
साहिर साहब का लिखा ये गीत मुझसे अक्सर प्रश्न करता कि इसे लिखते समय उनकी मन:स्थिति क्या रही होगी। अक्टूबर 1975 में साहिर साहब का चंडीगढ़ आना हुआ, मैं बैचेन था की उनसे कोई भी तिकड़म लड़ा के मिलूं
और खुदा ने मेरा काम आसान कर दिया प्रोफेसर dilgir साहब की वजह से ।