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#प्रेम_में_असफलता अक्सर अखबार में खबर देखने को मिल

#प्रेम_में_असफलता
अक्सर अखबार में खबर देखने को मिलती हैं कि प्रेम में असफल प्रेमी/प्रेमिका ने की आत्महत्या.... अमुमन हर रोज़  ऐसी खबर आ ही जाती हैं।
प्रेम में असफलता???   
आप इस छोटे से वाक्य को कैसे परिभाषित करोगे??
कैसे इस असफलता को आप शब्दों के मापदंडों में तय करोगे??
प्रेम कोई खेल तो हैं नहीं जिसमें सफलता या असफलता का निर्णय लिया जा सके। प्रेम में भला कोई कैसे असफल हो सकता हैं??? अगर वाकई में प्रेम आत्मा से हुआ हैं तो आप उस प्रेम में कभी भी असफल नहीं हो सकते हैं। वो प्रेम तो मृत्युपरांत भी ख़त्म नहीं होता हैं क्योंकि आत्मा अमर होती हैं। ठीक उसी प्रकार प्रेम भी अमर होता हैं। उसे न तो हम ख़त्म कर सकते हैं न ही उसे हम असफलता का नाम दे सकते हैं।
गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा हैं कि जब आपको अपने प्रेमी को खोने का डर रति भर भी ना हो तब आप सच्चे प्रेम की अनुभूति करते हो। बिना किसी मोह के वैसा प्रेम किया जाता हैं। जो की आजकल देखने को मिलता ही नहीं हैं। 
दरअसल जो लोग आत्महत्या करते हैं उन लोगों ने कभी प्रेम को समझा ही नहीं होता हैं और फिर भी ऐसे लोग प्रेमी का तमगा लेकर मरते हैं। वो कहाँ प्रेमी हुए जिनको खुद से ही प्रेम न हो।  
प्रेम करना गलत नहीं हैं पर सिर्फ एक प्रकार के प्रेम को ही जिंदगी समझ बैठना, ये गलत हैं। एक सच्चे प्रेमी को मात्र एक लड़की से ही प्रेम नहीं होता हैं, उसे प्रेम होता हैं खुद से जुड़े हर एक इंसान और हर एक कार्य से। 
आपने प्रेम किया, किसी वजह से दोनों को बिछड़ना पड़ा और आपको लगा की आपकी जिंदगी ख़त्म हो गयी और ऐसे में इंसान या तो खुद को बर्बाद करता हैं या फिर खुद को ख़त्म कर लेता हैं। देखा जाये तो दोनों ही स्थितियों में करता खुद को ख़त्म ही हैं। ये किस प्रकार का प्रेम था???
राधा के न मिलने पर श्री कृष्ण ने मदिरा का सेवन शुरू नहीं कर दिया था। उसके बाद भी उन्होंने अपनी संपूर्ण जिम्मेदारियों को पूरा किया। इसी प्रकार सीता जी के वियोग में श्री राम ने आत्महत्या नहीं कर ली थी उन्होंने अपनी जिंदगी प्रजा की सेवा में निकाल दी। 
प्रेम के अलावा भी जिंदगी में बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं और उन जिम्मेदारियों से भी आप सच्चा प्रेम करना सीखिये ना। हम अगर इस दुनिया में आये हैं तो हमारे आने के पीछे कुछ तो मकसद होगा ही तो हमें उस मकसद को पूरा करना चाहिए। वो भी तो हमारा प्रेम हैं। उस प्रेम को हम कैसे भूल सकते हैं???
किसी को पा लेना भर ही सच्चा प्रेम नहीं होता हैं। सच्चा प्रेम होता हैं उस इंसान के एहसास को अपनी रूह में बरकरार रखना। अगर आपकी रूह में वो एहसास जिन्दा हैं तो आपने कभी भी अपने प्रेमी/प्रेमिका को नहीं खोया हैं। 
इतनी योनियों से गुजरने के बाद हमें मनुष्य रुपी जीवन मिलता हैं उसे हमें ऐसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। 
पहले स्वयं को समझे, उसके बाद प्रेम को समझे।
जय बजरंग बली🙏🙏
Anjana Bhagwati Failure in love
#Love
#प्रेम_में_असफलता
अक्सर अखबार में खबर देखने को मिलती हैं कि प्रेम में असफल प्रेमी/प्रेमिका ने की आत्महत्या.... अमुमन हर रोज़  ऐसी खबर आ ही जाती हैं।
प्रेम में असफलता???   
आप इस छोटे से वाक्य को कैसे परिभाषित करोगे??
कैसे इस असफलता को आप शब्दों के मापदंडों में तय करोगे??
प्रेम कोई खेल तो हैं नहीं जिसमें सफलता या असफलता का निर्णय लिया जा सके। प्रेम में भला कोई कैसे असफल हो सकता हैं??? अगर वाकई में प्रेम आत्मा से हुआ हैं तो आप उस प्रेम में कभी भी असफल नहीं हो सकते हैं। वो प्रेम तो मृत्युपरांत भी ख़त्म नहीं होता हैं क्योंकि आत्मा अमर होती हैं। ठीक उसी प्रकार प्रेम भी अमर होता हैं। उसे न तो हम ख़त्म कर सकते हैं न ही उसे हम असफलता का नाम दे सकते हैं।
गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा हैं कि जब आपको अपने प्रेमी को खोने का डर रति भर भी ना हो तब आप सच्चे प्रेम की अनुभूति करते हो। बिना किसी मोह के वैसा प्रेम किया जाता हैं। जो की आजकल देखने को मिलता ही नहीं हैं। 
दरअसल जो लोग आत्महत्या करते हैं उन लोगों ने कभी प्रेम को समझा ही नहीं होता हैं और फिर भी ऐसे लोग प्रेमी का तमगा लेकर मरते हैं। वो कहाँ प्रेमी हुए जिनको खुद से ही प्रेम न हो।  
प्रेम करना गलत नहीं हैं पर सिर्फ एक प्रकार के प्रेम को ही जिंदगी समझ बैठना, ये गलत हैं। एक सच्चे प्रेमी को मात्र एक लड़की से ही प्रेम नहीं होता हैं, उसे प्रेम होता हैं खुद से जुड़े हर एक इंसान और हर एक कार्य से। 
आपने प्रेम किया, किसी वजह से दोनों को बिछड़ना पड़ा और आपको लगा की आपकी जिंदगी ख़त्म हो गयी और ऐसे में इंसान या तो खुद को बर्बाद करता हैं या फिर खुद को ख़त्म कर लेता हैं। देखा जाये तो दोनों ही स्थितियों में करता खुद को ख़त्म ही हैं। ये किस प्रकार का प्रेम था???
राधा के न मिलने पर श्री कृष्ण ने मदिरा का सेवन शुरू नहीं कर दिया था। उसके बाद भी उन्होंने अपनी संपूर्ण जिम्मेदारियों को पूरा किया। इसी प्रकार सीता जी के वियोग में श्री राम ने आत्महत्या नहीं कर ली थी उन्होंने अपनी जिंदगी प्रजा की सेवा में निकाल दी। 
प्रेम के अलावा भी जिंदगी में बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं और उन जिम्मेदारियों से भी आप सच्चा प्रेम करना सीखिये ना। हम अगर इस दुनिया में आये हैं तो हमारे आने के पीछे कुछ तो मकसद होगा ही तो हमें उस मकसद को पूरा करना चाहिए। वो भी तो हमारा प्रेम हैं। उस प्रेम को हम कैसे भूल सकते हैं???
किसी को पा लेना भर ही सच्चा प्रेम नहीं होता हैं। सच्चा प्रेम होता हैं उस इंसान के एहसास को अपनी रूह में बरकरार रखना। अगर आपकी रूह में वो एहसास जिन्दा हैं तो आपने कभी भी अपने प्रेमी/प्रेमिका को नहीं खोया हैं। 
इतनी योनियों से गुजरने के बाद हमें मनुष्य रुपी जीवन मिलता हैं उसे हमें ऐसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। 
पहले स्वयं को समझे, उसके बाद प्रेम को समझे।
जय बजरंग बली🙏🙏
Anjana Bhagwati Failure in love
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anjanabhati6486

Anjana Bhati

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