Unsplash खामोश दरख़्त का दर्द हवा समझती है, एक बीमार की मुश्किल दवा समझती है। मैं कि मशरूफ हूँ उसके ख़यालों में, वो कि अब भी मुझे ख़फा समझती है। माना कि बंद है लफ्ज़ों का कारोबर, मगर एहसास की जुबाँ वफ़ा समझती है। - निखिल जोशी ©ᴋʜᴀɴ ꜱᴀʜᴀʙ #snow poetry in hindi deep poetry in urdu