#बादल/#प्रतीक "धूम बना कर चलते बादल, पल-पल रूप बदलते बादल, लाल कभी तो केसर जैसे, सूरज रोज निगलते बादल, ज्वाला-जैसी माँ की ममता, बन कर बेटा फलते बादल, अब्बा यानि सुलगती धरती अम्मा यानि पिघलते बादल, दिन को उजले शब में काले, खादी को यूँ छलते बादल, हीरे मोती सांझ निहारे हाथ सवेरे मलते बादल, चुनरी बन कर के कन्या की, दुनियाँ बीच उछलते बादल, जीवन के जैसे पर्वत पर, गिरते और सम्भलते बादल, इक घर बरसे इक घर सूखे, बन तकदीर टहलते बादल, चान्द चुरा कर लाया हूँ मैं, तब से मुझ से जलते बादल, गोविन्द लिखे है प्रीत-फ़िज़ा, उस को पढ़ के गलते बादल।" #चारण_गोविन्द #चारण_गोविन्द #govindkesher #CharanGovindG #बादल #शाइरी #Poet #Poetry #ग़ज़ल