काश तुम...... वही तुम बन जाओ ...... अंधेरेमन के कोने से जुगनू सा निकलकर सामने आ जाओ और वो पंखुडियां जो तुमने संभाल रखी हैं ..... मेरे व्याकुल से मन पर बिखेर जाओ ...... फिर से तुम.. तुम बन जाओ .... किस्से कहूँ तुम मेरे लिये थी , मैं तेरे लिये था ..... यहीं सच था , बाकी सब फरेब था ..... तेरी नासमझी कहूँ या फरेब कहूँ जो भी था पर क्या खूब असर दिखाया ... एक दूसरे को आखों के आँशु की तरह बहा दिया ..... ये कैसा दिलकश मुहब्बत का मिलन था मेरा तुम्हारा .... हम एक दूसरे के होकर भी कहाँ एक दूसरे के हो सके .... पडेसान हूँ आवारगी से तुम्हारी ए फ़रेबी बाबड़े .... सुनो न जमाना मज़े ले रहा आते जाते तुम्हारी फ़रेबी दास्तां सुना सुना कर कैसे ख़ुद को समझाऊँ यूँ ना भटका कर जहां तहां मन बाबड़े .... एहसास जिंदा करा देतीं है तुम्हारी रूह की खुशबू जिनसे बातें अक्सर होती है...... सुनो न मुँहब्बत उनसे भी करते हैं जिनसे कभी मुलाकातें नहीं होती है.... कैसे तुम्हें बताऊ तुम्हारी दग़ा की शबनम , जो निशीथ की होठों को जला गई थी ..... उसका ज़हर आंखों से उतारने की तमाम कोशिशें बेकार हो रही है ..... पागलमन का पहले चीखना चिल्लाना फिर सिसकना और फिर खुद से टूट कर चुप हो जाना.. मुझसे तुम्हारा फ़रेबी होना तुम्हारा मुझसे दूर होना .... कैसे बताऊ तुम्हारे चले जाने के बाद मेरा दिल किसी बिन माँ के बच्चे की तरह बिलखता रहता है ..... 🤔निशीथ🤔 ©Nisheeth pandey काश तुम...... वही तुम बन जाओ ...... अंधेरेमन के कोने से जुगनू सा निकलकर सामने आ जाओ और वो पंखुडियां जो तुमने संभाल रखी हैं ..... मेरे व्याकुल से मन पर बिखेर जाओ ......