फिर कुछ लम्हों को ,धुंधली यादें बनाने जा रहा हूँ 'मैं', मन या फिर 'बेमन' से ,सब-कुछ भुलाने जा रहा हूँ मैं, था यहां बहुत कुछ 'हंसी',मगर अब कुछ भी नहीं, ऐसे कुछ ज़ज़्बातों को,आज मिटाने जा रहा हूँ मैं, पत्थरों पर गुलाब खिलानें का , बहुत गुमां था मुझे, ऐसे चंद हौसलों को,गहरी नींद सुलाने जा रहा हूँ मैं, ना कोई वापस आएगा,ना आने का झूठा बहम् पालूंगा, 'बेबुनियादी' हर बहम् को , आज दफ़नाने जा रहा हूँ मैं, वीरानीयां ही नसीब हैं शायद,अब राहग़ुजर को मेरी, ऐसे ख़यालातों से ,आज मुतासिर होता जा रहा हूँ मैं, ज़िन्दगी का जीना तो मेरी,महज़ इक बहाना है यारों, किसी के सुकूं के लिए,खुद को जलाने जा रहा हूँ मैं, फिर कुछ लम्हों को ,धुंधली यादें बनाने जा रहा हूँ 'मैं', मन या फिर 'बेमन' से ,सब-कुछ भुलाने जा रहा हूँ मैं।। फिर कुछ लम्हों को ,धुंधली यादें बनाने जा रहा हूँ 'मैं', मन या फिर 'बेमन' से ,सब-कुछ भुलाने जा रहा हूँ मैं, था यहां बहुत कुछ 'हंसी',मगर अब कुछ भी नहीं, ऐसे कुछ ज़ज़्बातों को,आज मिटाने जा रहा हूँ मैं, पत्थरों पर गुलाब खिलानें का , बहुत गुमां था मुझे, ऐसे चंद हौसलों को,गहरी नींद सुलाने जा रहा हूँ मैं,