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हम वो पीढ़ी हैं, जिसने महाकुम्भ भी देखा है। तपस्वीन

हम वो पीढ़ी हैं, जिसने महाकुम्भ भी देखा है।
तपस्वीनी इस धारा को हमने,
सजते-संवारते देखा है।

पतित-पावनी इस धरती पर पतितों को पावन होते देखा है।
साधु सन्तों से सजी धरती को,
खुद पर इतराते देखा है।

नर-नारी और किन्नर को एक घाट पर बसते देखा है।
अर्पण-तर्पण की भूमि पर हमने,
पूर्ण समर्पण देखा है।

मोह-माया में फसे जनों को भक्ति में डूबा देखा है।
नेता-अभिनेताओं को भी हमने,
संगम में डुबकी लगाते देखा है।

हाड़ कपाती सर्दी में हमने शाही स्नान भी देखा है।
संगम की नदियों को हमने,
मिलकर नृत्य करते देखा है।

‘गूगल बाबा’ को भी हमने ‘महाकुंभ’ का दीवाना देखा है,
‘महाकुंभ’ के नाम पर,
पुष्प वर्षा करते देखा है।

144 साल बाद आने वाले इस पर्व को हमारी पीढ़ी ने देखा है।
धन्य हैं हम!
जो इस भूमि,इस पीढ़ी में जन्मे,
हा हमने भी, ‘जन्नत’ को धरती पर देखा है।
‘जन्नत, को धरती पर देखा है।

©ANURAG हम है ओ पीढी
#महाकुंभ2025 #पीढी_दर_पीढी #सबको #सबको_हक़_हैं_इससे_आजाद_होना_ज़रूरी_हैं
हम वो पीढ़ी हैं, जिसने महाकुम्भ भी देखा है।
तपस्वीनी इस धारा को हमने,
सजते-संवारते देखा है।

पतित-पावनी इस धरती पर पतितों को पावन होते देखा है।
साधु सन्तों से सजी धरती को,
खुद पर इतराते देखा है।

नर-नारी और किन्नर को एक घाट पर बसते देखा है।
अर्पण-तर्पण की भूमि पर हमने,
पूर्ण समर्पण देखा है।

मोह-माया में फसे जनों को भक्ति में डूबा देखा है।
नेता-अभिनेताओं को भी हमने,
संगम में डुबकी लगाते देखा है।

हाड़ कपाती सर्दी में हमने शाही स्नान भी देखा है।
संगम की नदियों को हमने,
मिलकर नृत्य करते देखा है।

‘गूगल बाबा’ को भी हमने ‘महाकुंभ’ का दीवाना देखा है,
‘महाकुंभ’ के नाम पर,
पुष्प वर्षा करते देखा है।

144 साल बाद आने वाले इस पर्व को हमारी पीढ़ी ने देखा है।
धन्य हैं हम!
जो इस भूमि,इस पीढ़ी में जन्मे,
हा हमने भी, ‘जन्नत’ को धरती पर देखा है।
‘जन्नत, को धरती पर देखा है।

©ANURAG हम है ओ पीढी
#महाकुंभ2025 #पीढी_दर_पीढी #सबको #सबको_हक़_हैं_इससे_आजाद_होना_ज़रूरी_हैं
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