मोतियों की माला बहुत बड़ी थी, यूँ ही गले से निकल जाया करती थी कभी खुदसे, कभी मेरी वज़ह से, फिर एक दिन माला उलझ कर टूट गयी, सारे मोती इधर-उधर होगये, सारे तो नहीं मिले लेकिन जितने मिले उतने काफी नहीं थे, माला तो बन्न गयी थी मगर अब..... छोड़ो क्या कहें।