तू महरूम सा क्यों हैं, मुझसे रफ्ता रफ्ता है फ़िराक़ में तू है हिज्र के, क्यों इत्तिफाक़ सा लगता है, क्यों हिकायत सी लगती है, पर फिर भी तू मेरा आशना लगता है ।। #आशना#प्रेमी