मुफ़लिसी की दौर थी, दिन गुजारे जा रहा था.! जीने की थी चाह उसे, बस जीए जा रहा था.! थी ज़मीन पास छोटी, था बसेरा रहने का.! खोला वो दुकान उसमें, बेचता वो सब्ज़ी था.! #मकान_दुकान साथ है, आमदनी बढ़ गई.! मुफ़लिसी की दौर से, जिंदगी निकल रही.! #अजय57 #मुफ़लिसी_का_दौर