यूँ कहे गुजर जाने दो उन पलों को। जो कभी हसीन बनकर आया करते थे। आज हम यूँ बन गए हैं खुद से बागी। अब तो हवाएं भी कतरानी लगी हैं। कभी ये पानी की बूंदे शालीनता से तर कर देती थी काया को। आज तो वो टपकना ही छोड़ दी। कभी ये रास्ते करुणा-उल्लास की राहें बताया करते थे। आज तो ये चलना ही अचरज एवं दुर्लभ कर दिए। प्रभात में बैठने पर पक्षियों की चूँ-चूँ आहट से दिल सौकुमार्य हो उठता था। अब तो शोर-शराबे के विनाशी बम सुनाई देते हैं। जिन रोशनियों में उत्फुल्ल की रौनक आया करती थी। आज वे क्यों काले घने बादलों की चादर ओढ़ लिए हैं। हम अपने जिन अवस्थाओं के सुनहरे पलों को सम्भार एवं सजेह कर रखते हैं। आज उन पर क्यों लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। ये सब सोंचकर मेरा मन विचलित हो उठता है। ये मानव समय एवं प्रकृति के साथ तादात्म्य एवं पुष्कलपूर्णता से कितनी घिनौनी हरकत कर रहा है। आज ये प्रकृति अपने नश्तर को टटोल रही है। संभल जाओं वरना हम बर्बाद हो जाएंगे। जो कल उगे भी नहीं वे आज समाप्त हो जाएंगे। बस यही सोचकर मन उद्वेग से अभिभूत हो जाता है।। ...🙏🙏🙏... TRIलोकी.-.TRIपाठी।✨ #Environment #Protect #Awareness #Nature #Disaster.. 🙏