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#OpenPoetry ""चार दिवारी"" मैं बहुत मसरूफ़ हूं दु

#OpenPoetry ""चार दिवारी""
मैं बहुत मसरूफ़ हूं 
दुनिया दारी में 
अपनी हद चार दिवारी में 
किरदार अनमना उसकी कहानी में,
डरता हूँ के ख्याल तेरा आ न जाये
कयोंकि मुझे फिर कही सारी बाते कहना होगी 
और मेरी बातो को गढ़ना होगा कोरे कागज पर
फिर चारदिवारी से निकलकर बंद आंखों से उस दुनिया में
 दाख़िल होता चला जाउगां जो कि मेरी नही है  पर मेरी है
जब उस दुनिया में जैसे सैर करूंगा आगे बढूगां
 कोई ख्याल मुल्तवी होने लगेंगे, दुआ जैसे मुक्कमल होने लगती हैं 
फिर धक से कोई जगा देगा, डपटेगा,कामचोर कहेगा, और
कागज कोरा रह जायेगा, पेन फिर मुलाजिम बन जायेगा, 
अल्फाज काफिर हो जायेगे
ख्याल हाथ छोडेगे
और फिर वही
चारदिवारी रहेगी
     कविता अधूरी रहेगी। 

लोकेंद्र की कलम से । #लोकेंद्र की कलम से # lokendra ki kalam se
#OpenPoetry ""चार दिवारी""
मैं बहुत मसरूफ़ हूं 
दुनिया दारी में 
अपनी हद चार दिवारी में 
किरदार अनमना उसकी कहानी में,
डरता हूँ के ख्याल तेरा आ न जाये
कयोंकि मुझे फिर कही सारी बाते कहना होगी 
और मेरी बातो को गढ़ना होगा कोरे कागज पर
फिर चारदिवारी से निकलकर बंद आंखों से उस दुनिया में
 दाख़िल होता चला जाउगां जो कि मेरी नही है  पर मेरी है
जब उस दुनिया में जैसे सैर करूंगा आगे बढूगां
 कोई ख्याल मुल्तवी होने लगेंगे, दुआ जैसे मुक्कमल होने लगती हैं 
फिर धक से कोई जगा देगा, डपटेगा,कामचोर कहेगा, और
कागज कोरा रह जायेगा, पेन फिर मुलाजिम बन जायेगा, 
अल्फाज काफिर हो जायेगे
ख्याल हाथ छोडेगे
और फिर वही
चारदिवारी रहेगी
     कविता अधूरी रहेगी। 

लोकेंद्र की कलम से । #लोकेंद्र की कलम से # lokendra ki kalam se