चित्कार हुआ हाहाकार हुआ जब समंदर का पानी परेशान हुआ रूप बाढ़ का लेकर उससे जन-धन का तब नाश हुआ जब आसमान में मेघों का तांडव कर क्रोध उभार हुआ तब जल के उच्च प्रवाह से सारा शहर उजाड़ हुआ घने जंगलों में अग्नि का जब चीर फैलाव हुआ तब जलवायु में जल और वायु का ही हरास हुआ हरे भरे पेड़ों पर जब निष्ठुर हाथों से प्रहार हुआ प्राणवायु का तब वायु से ही अलगाव हुआ जब नदी झरनों का नीर मल अपशिष्टों से दूषित हुआ गंगा के पानी का रंग तब नीले से लाल हुआ जब पशु-पक्षी मानव का अमानवीय शिकार हुआ तब जग में जीवन चक्र का असंतुलित व्यवहार हुआ प्रकृति के प्रेम का जब जब विश्व में लोप हुआ तब तब जल-जीवन का भी ऐसे ही विलोप हुआ अब भी जागे तो बचा पाओ इस सृष्टि के संहार को वरना प्रकृति की दृष्टि से बचा ना पाओगे संसार को *अजेय* #प्रकृति का नाश कर तुम क्या खुद*को बच पाओगे?#EnviournmentDayspecial#