*व्यथा* ओ चाँद मेरे कर रहा पासबान बनकर हिफ़ाज़त मांगों की कुछ तो सोच मेरे भी अरमानों की! माना संभाला तुमने देश की सीमा मैंने भी घर की सीमा संभाली है वामा तुम्हारी,वीरांगना मैं भी पर तुम बिन,सब रीता, खाली है। यही दुआ बस मेरी रब से रहे सलामत चाँद मेरा देश और गरूर मेरा। मैं रहूँ बंधी उससे बस उसके रोशनी सी! रोज़ करती मैं मान,मनुहार ऊपर वाले चाँद से बनाये रखे उम्मीद मेरी टूटे व्रत मेरा भी किसी दिन सुहागिन सी बहुत मान तुझ पर बहुत अभिमान तुझ पर पर अरमान भी हैं मेरे बस एक स्त्री सी..... #व्यथा #चाँद #फौजीकीबीवी