आह से कराहती रही वो अनकही दास्तां सी वो भूख की प्रचंडता सब कुछ जला रही थी धरती असमान बिन गलियों के भी चला रही थी मां तड़पती रही प्यास से बूंद के लिए कराह रही थी वो रोटी थी की छला रही थी रोटी मुझको बुला रही थी ठहर न पाया एक पल पास पापी पेट की रोटी दो घरी की नींद सुला रही थी न हुई तेरहवीं न हुई बरसी अग्नाश्य की अग्नि जला रही थी तड़प रहा था जब मैं भूख से और मां मेरी लोरी गा कर सुला रही थी कैस कहता मां से मैं भूख कहां से सहता मै मां समझी थी मैं बड़ी मां से बढ़कर मेरी भूख है। ©rashmi98 #अक्टूबर #octoberpoem #Nojoto2liner #NojotoEnglishPoetry #Englishpoetry #hindi_poetry #nojotohindipoetry #Ajadkalakar