जिन्दगी के किस मुकाम पर, शाम हो जाये। हलक में बिन उतरे एक जाम, हम बदनाम हो जाये। सोचता हूँ कि दौड़ जाऊं, नशे में सराबोर होकर, कौन कहता है कि संभलकर,चलने से नहीं लगती ठोकर। छोड़ दी मैनै शराफत, जब शरीफ़ डराने लगे। देके दर्द का मरहम, घाव रोज लगाने लगे। ऐ वक़्त रूक जा, मेरा ये काम हो जाये, दिल लगा लु कि दिल, किसी संगदिल गुलाम हो जाये। #livelifeb4die