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तमाशा खुली आँखो से बेफिक्री से देख रहे हो दुनिया व

तमाशा खुली आँखो से बेफिक्री से
देख रहे हो दुनिया वालो तुम...
ना कोई रोक है, ना कोई टोक है,
सब अनदेखा कर रहे हो तुम...
कोई बात नही, क्या फर्क़ पड़ता है?
अपना नही है, सोचकर आगे बढ रहे हो तुम...
वक्त नही है, काम बहुत है,
मै नही कोई और देख लेगा, यही सोच रहे हो तुम...
जब बहन-बेटी-बीवी किसी और की हो,
झट से आगे निकल जाते हो तुम...
अपने घर की इज्जत पर हाथ डाल दे कोई,
तो आग-बबूला हो जाते हो तुम...
फिर ना वक़्त की चिन्ता, ना काम की चिन्ता,
बस गन्दगी मिटाने को भिड़ जाते हो तुम...
खून मै वो उबाल उठता है,
कि मरने-मारने को तैयार हो जाते हो तुम...
फिर किसी और बहन-बेटी के नाम पर,
क्यूँ चुप हो जाते हो तुम...
गरिमा तो हर स्त्री की जरूरी है,
समाज तो सब से है और इसी समाज में हो तुम...
नही अगर गौर करोगे इस पर,
ना ये समाज बचेगा और ना ही बचोगे तुम...
अस्तित्व अगर उसका मिटेगा,
तो कैसे अस्तित्व में रहोगे तुम...

©Bhoomi
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