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किसी रोज़ हो तू रूबरू, ये ना फांसलें हो दरमियांँ।

किसी रोज़ हो तू रूबरू, ये ना फांसलें हो दरमियांँ।
मेरे लब से तेरे लब तलक, रहे सांसों की ही गर्मियां।।

तेरा जिस्म फिर मैं औढ़ लूं, तू लगे कि हिस्सा हो मेरा।
मैं ना लिखूं कुछ और अब, मेरे लफ्ज़, नज़्म अब, सब तेरा।।
rohit3582247333322

Rohit

New Creator

किसी रोज़ हो तू रूबरू, ये ना फांसलें हो दरमियांँ। मेरे लब से तेरे लब तलक, रहे सांसों की ही गर्मियां।। तेरा जिस्म फिर मैं औढ़ लूं, तू लगे कि हिस्सा हो मेरा। मैं ना लिखूं कुछ और अब, मेरे लफ्ज़, नज़्म अब, सब तेरा।।

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