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पीपल के नीचे बैठ सोच रहा।। गांव मेरे की कहानी सोच

पीपल के नीचे बैठ सोच रहा।।
गांव मेरे की कहानी सोच रहा ।।
मिट्टी का घर आंगन मेरा था।।
मिट्टी का खेल आंगन मेें खेला था।।
हर सुबह नई सुबह थी ।।
गांव मेरे की सुबह थी ।।
कोयल गीत सुनाती थी ।।
चिड़िया चहकती थी ।।
रई छाछ की बिलोती मक्खन ।
रस्सी करती समुद्र मंथन मानो।।
छाछ संग बहुत ही मथला जाता ।।
गीरी पर्वत जैसे घी निकल जाता ।। #गांव
पीपल के नीचे बैठ सोच रहा।।
गांव मेरे की कहानी सोच रहा ।।
मिट्टी का घर आंगन मेरा था।।
मिट्टी का खेल आंगन मेें खेला था।।
हर सुबह नई सुबह थी ।।
गांव मेरे की सुबह थी ।।
कोयल गीत सुनाती थी ।।
चिड़िया चहकती थी ।।
रई छाछ की बिलोती मक्खन ।
रस्सी करती समुद्र मंथन मानो।।
छाछ संग बहुत ही मथला जाता ।।
गीरी पर्वत जैसे घी निकल जाता ।। #गांव