Unsplash **सच्चाई के लोर** चलत रही सच्चाई संग पर,साथ केहू ना आइल हो फूल बिछवनी सबका खातिर,हमरे के कांट भेटाईल हो न दिल में कपट रहे हमारा,ना चाह ना कउनो स्वार्थ रहे करके मेहनत मजदूरी हम,परिवार के अपना साथ रहे लोगन के आंख में झूठ बाटे,मुस्कान त खाली देखावा बा कपड़ा खाली बा साफ़ मगर,दिल में बसल छलावा बा बेबस बानी,लाचार भी हम,कुछ हमरा नाहीं सूझत बा मोह भंग भइल समाज से मोर,अब दिलवा हमरो टूटत बा सच्चाई ईमानदारी त बस अब ,कहे सुने के खातिर बा झूठ फरेब के बस दौर चलत बा,दीन धर्म पइसा के थाती बा फिर भी दिल मोर न मानता,कइसे एके मनाई हम साच के राह बड़ी मुश्किल बा,एकरा कइसे समझाई हम जे सही रहल उहे चुनली,हर बार झूठ के ठुकरवली कसूर मोर बा एतने कि हम,होत गलत कब्बो न देख पवली लेकिन एक आस बाटे कि फिर,सच के नया विहान होई आज भले सच ग़च ना बा पर, एकरो फिर से कल्याण होई अंकुर तिवारी , ©Ankur tiwari #Book