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लिख-लिखकर मैं रख रहा हूँ शब्द हूँ, पन्नों में पन

लिख-लिखकर मैं रख रहा हूँ 
 शब्द हूँ, पन्नों में पनप रहा हूँ 
 इंसानियत प्रमाणित है मेरी 
 मैं जन कार्ड धारक रहा हूँ 
बिज बो दिया हूँ
कभी तो उसमें पेड़ आऐगा
मैं वो  नंन्हा दिप हूँ जो
 अंधियारे में भी पुरे कमरे में चमक दिया, 
 मैं सुबह होने तक कमरे का साथ रहा  हूँ ll 
बेशक समतल पठार हूँ मैं आज 
 कभी ऊबड-खाबड़ पर्वत भी रहा हूँ 
 हाँ आज मैं हूँ अंधेरा में  लेकिन
एक दिन सवेरा मेरा भी होगा
कोई नही है पुछने वाला आज मेरा लेखनी को लेकिन दिन  कभी ऐसा भी आऐगा जब मेरा भी लेखनी कभी किसी मंच का काम आऐगा
 (अभिषेक सिंह)

©Ak Singh लिख लिख कर रख रहा हूं........

#Light
लिख-लिखकर मैं रख रहा हूँ 
 शब्द हूँ, पन्नों में पनप रहा हूँ 
 इंसानियत प्रमाणित है मेरी 
 मैं जन कार्ड धारक रहा हूँ 
बिज बो दिया हूँ
कभी तो उसमें पेड़ आऐगा
मैं वो  नंन्हा दिप हूँ जो
 अंधियारे में भी पुरे कमरे में चमक दिया, 
 मैं सुबह होने तक कमरे का साथ रहा  हूँ ll 
बेशक समतल पठार हूँ मैं आज 
 कभी ऊबड-खाबड़ पर्वत भी रहा हूँ 
 हाँ आज मैं हूँ अंधेरा में  लेकिन
एक दिन सवेरा मेरा भी होगा
कोई नही है पुछने वाला आज मेरा लेखनी को लेकिन दिन  कभी ऐसा भी आऐगा जब मेरा भी लेखनी कभी किसी मंच का काम आऐगा
 (अभिषेक सिंह)

©Ak Singh लिख लिख कर रख रहा हूं........

#Light