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बारिश बहुत पसंद है न तुम्हें, मेरे शहर पर भी बादल

बारिश बहुत पसंद है न तुम्हें, 
मेरे शहर पर भी बादलों की मेहरबानी है। 
मैं ले आता तुम्हें तुम्हारे घर से, 
पीछे कैरियर पे बिठा कर, 
मगर पिछले पूरे सावन, 
बाहर खड़ी-खड़ी 
मेरी साईकिल जंग खा गई है।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  बारिश बहुत पसंद है न तुम्हें, 
मेरे शहर पर भी बादलों की मेहरबानी है। 
मैं ले आता तुम्हें तुम्हारे घर से, 
पीछे कैरियर पे बिठा कर, 
मगर पिछले पूरे सावन, 
बाहर खड़ी-खड़ी 
मेरी साईकिल जंग खा गई है।
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बारिश बहुत पसंद है न तुम्हें, मेरे शहर पर भी बादलों की मेहरबानी है। मैं ले आता तुम्हें तुम्हारे घर से, पीछे कैरियर पे बिठा कर, मगर पिछले पूरे सावन, बाहर खड़ी-खड़ी मेरी साईकिल जंग खा गई है। ।।

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