मैं:- हम इश्क़ करने वालों को फुरसत कहाँ जो अपने गम लिखेंगे। हम तो बस वो आशिक जो आज भी तेरी यादों के कुछ 'जख्म' लिखेंगे।। वो:-जख्म कि याद न दिलाओ हम मर जायेंगे। कभी तो 'पास 'आओ हम 'सवर' जायेंगे।। मैं:-तुम सवर गयें तो इश्क़-ए-दुनिया में बवाल कौन करेगा। हम पास आ गयें गर तुम्हारे तो मंदिर मे दुआ, और मज्जिद मे हमारे नाम की नवाज कौन पढे़गा।। वो:-'खुदा 'की रहमत हो तो मुकम्मल हर जहान है। मेरे इश्क के लिए तो तू ही खुदा है। मैं:- मुझे खुदा न बनाओ इंसान रहने दो। अपने हर जख्म के मुझमें निशान रहने दो।। #wo or mai or hmari bate# for you#