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वजूद की तलाश में ख़ुद अपना घर छोड़ आए है, सुना है हम

वजूद की तलाश में ख़ुद अपना घर छोड़ आए है,
सुना है हमनें  घनी  धूप के बाद बहारों के साये है।

दुनिया की हक़ीक़त का इल्म जरा देर से हुआ हमें
जब काँटो से बचकर हमनें फूलों से ज़ख्म खाए है।

बरखा बादल से निकलीं बिजलियां भी लायी संग,
ज़मी की प्यास बुझी लेकिन सैकडों घर जलाए है।

मन की उलझनें  रही या  कोई तसव्वुर-ए-जाना,
इसी कश्मकश में  ख़ुद लौ-ए-इश्क़ के बुझाए है।

तग़ाफ़ुल उम्र भर जिनकों  बेइंतहा करते रहे हम,
ग़ज़ल बताकर जिंदगी ने उसी के किस्से सुनाए है।

उम्मीदों तोहमतों  रुसवाइयों का बोझ  रहा "आशु",
पलकों पर भार  रखकर भी हम ख़ूब मुस्कुराए है। #मन_की_उलझन_team_alfaz #newchallenge

There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio)
Today's Topic is 

*मन की उलझन*

Any writer can write anything but *remember the rule*
वजूद की तलाश में ख़ुद अपना घर छोड़ आए है,
सुना है हमनें  घनी  धूप के बाद बहारों के साये है।

दुनिया की हक़ीक़त का इल्म जरा देर से हुआ हमें
जब काँटो से बचकर हमनें फूलों से ज़ख्म खाए है।

बरखा बादल से निकलीं बिजलियां भी लायी संग,
ज़मी की प्यास बुझी लेकिन सैकडों घर जलाए है।

मन की उलझनें  रही या  कोई तसव्वुर-ए-जाना,
इसी कश्मकश में  ख़ुद लौ-ए-इश्क़ के बुझाए है।

तग़ाफ़ुल उम्र भर जिनकों  बेइंतहा करते रहे हम,
ग़ज़ल बताकर जिंदगी ने उसी के किस्से सुनाए है।

उम्मीदों तोहमतों  रुसवाइयों का बोझ  रहा "आशु",
पलकों पर भार  रखकर भी हम ख़ूब मुस्कुराए है। #मन_की_उलझन_team_alfaz #newchallenge

There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio)
Today's Topic is 

*मन की उलझन*

Any writer can write anything but *remember the rule*