हां, हां, मैं मनमौजी, चाहूं तो घुल जाऊं नदियों में, और मिल जाऊं, सागर में, चाहूं कभी रोक लूं इन का बहना, क्यूंकि मुझे मीठा नदियों का पानी, खारा नहीं करना। हां, मैं मनमौजी, चाहूं कभी उड़ती फिरूं नील गगन में,