उलझन लेखक - सीवी शिवानी ऐसा उल्झन है कैसे बताऊं किसे मैं ना समझी कैसे समझाऊं किसे ना आदत हुई कोई ना ही फसाना है ना जाने क्यों मेरा दुश्मन बना जमाना है बीती बातें यादो में आया करती हैं सामने जाने से नजरें हमारी डरती है चाह कर भी नहीं मैं कह पाती हूँ ऐसे उल्झन को ना ही मैं सह पाती हूँ ठीक हूँ मैं सभी को बताती यही गम है भीतर ऊपर खुश दिखाती रही मन ना लगता है मेरा कहीं पर कभी खुद भी समझी ना कि क्या है वजह ये सभी ऐसे उलझन में घुंट घुंट के जीती हूँ मैं शिवानी दुःख को चित्रांगद अब सीती हूँ मैं उलझन