पल्लव की डायरी इस दौर में,शर्मिंदा सब बैठे है ख्वाबो के सब पंख कटे बैठे है होने लगी है अब मनमानी सहकर भी मौन बैठे है दाँव लगाकर रोटियों पर लुटे पिटे हम बैठे है सियासतों के दमनकारी हाथों में जीवन की उड़ाने भूल चुके है सत्ता की अटखेलियों में हवन जीवन का कर संघर्षो का जहरीला धुँआ हम सब पी चुके है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" संघर्षो का जहरीला धुँआ पी चुके है