वो बंजारन वो बंजारन सी थी एक जगह ठहरना पाती थी। प्यार तो बेहद करती थी मगर कहना पाती थी। मैं ना वाकीत था उसके प्यार से। वह डरती थी मेरे इंकार से। प्यार तो मैं भी बेहद करता था उसकी अदा पर मैं भी मरता था। फिर कुछ दिन तक वो आई नहीं। अपने कई दोस्तों से भी मिला बातें भी की मगर सब बेमतलब जो गाली सा लगा। उसके घर में जाना अनिवार्य हो गया था। जैसे बस से उतरा तू देखो उसी का जनाजा जा रहा था। शब्द नहीं है मेरे पास बताने को हाले दिल मेरा। जनाजा वहां निकला और आत्मा की शरीर यहां छोड़ा। अरे पगली हाले दिल तो बता कर जाती तो पता तो सकता था मेरा दिल किसने तोड़ा। क्या करूं इस शहर में क्योंकि तू ही तो एक मैजबा था। अंधा प्यार तो हर कहीं होता है मेरा बेजुबान था। वो बंजारन