ना जाने तु मुझसे क्या चाहता है शाम ढलते ही एक अलग सा एहसास जगा जाता है तू तो तड़पता है मन ही मन बेवजह ही मुझे रुला जाता है तू ढूंढता फिरता है उसे जो ना जाने कब से तेरा है मैं ठहरा रहता हूं उसी जगह और तू बिन मुड़े ही चला जाता है न जाने तु मुझसे क्या चाहता है.... तू जो चाहता है वो भी कहां बताता है आखिर तू किस वजह से घबराता है तू कभी तो अपना हौसला दिखा छुपाए बैठा है अपने अंदर कभी तो उसे बाहर ला एहसास कर जो तड़प है तेरे अंदर पल भर मे कैसे मेरे अंदर समा जाता है तू कच्ची नींद से सोता है और मुझे रात भर जगा जाता है ना जाने तु मुझसे क्या चाहता है... : : : ©md shakib khan nightmare