कर गया ज़िन्दगी तन्हा सहरा की तरह हो गया मुझसे जुदा बनके ख़ुदा पत्थर की तरह हुई मज़रूह यूँ आँखों से टपकती बूँदें अब तो लगता है मुझे ज़ख्म भी मरहम की तरह तेरे इंतज़ार में दरो-दीवार भी सिसकने हैं लगी आँखों को छोड़ कर मेरा जिस्म है पत्थर की तरह ग़म-ए-फ़ुरक़त का वो एहसास यूँ रुलाता है हमें माँ के आंचल से बिछड़ते हुए बच्चे की तरह आ भी जाओ की नहीं बस में है धड़कन मेरी क्या ख़बर रूठ आओ जाए कब मुकद्दर की तरह #ज़िन्दगी_तन्हा📙